RAJASTHAN1ST : आमतौर पर यज्ञ-हवन करते समय लोग माचिस जलाकर कपूर से हवन कुंड में अग्नि यानी आग प्रज्वलित करते हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार हवन और यज्ञ में इस तरह से आग प्रज्वलित नहीं करनी चाहिए बल्कि मंत्रोच्चार के साथ अरणी मंथन से उत्पन्न आग का प्रयोग हवन कुंड में करना चाहिए। ऐसी ही कई शास्त्रों की बातें कोटा में बच्चे सीख रहे हैं और प्रैक्टिकल भी कर रहे हैं। आपने कभी ही सुना होगा कि लकड़ी को घिस कर आग पैदा की जाती है और उसे हवन या यज्ञ में उपयोग में लिया जाता है। ऐसा होता है कोटा के रामधाम में संचालित भक्त वेदमाल स्कूल में। जहां बच्चों को धर्म शास्त्र, वेदों की शिक्षा दी जाती है। राजस्थान संस्कृत अकादमी की ओर से रामधाम में संचालित भक्त वेदमाल विद्यालय में लिखित, मौखिक परीक्षा हुई। पांच वर्षीय कोर्स में प्रदेश सहित एमपी, यूपी के बटुक शामिल हुए। प्रथम वर्ष के राघव शर्मा ने यजुर्वेद से संबंधित प्रश्न के जवाब में आंखों में आंसू आ गए लेकिन मंत्र लगातार सुनाता रहा। यहां परीक्षा लेने के लिए रेवासा सीकर के शिक्षक पहुंचे। करीब 2 घंटे तक लिखित, 4 घंटे मौखिक परीक्षा हुई। वेदाचार्य निधिनाथ ढकाल ने बताया कि इसमें पास होने के बाद सरकार की ओर से बटुकों को स्कॉलरशिप मिलती है। यहां छोटे बच्चों को भी वेद, शास्त्रों की शिक्षा दी जाती है। मंत्रोच्चार करवाए जाते हैं। इस दौरान बच्चों को अरणी मंथन की प्रक्रिया भी करके बताई गई। निधिनाथ से जब अरणी मंथन के बारे में जानकारी तो उन्होंने बताया कि लकड़ी से मन्त्रोच्चार के साथ आग प्रज्ज्वलित करने को अरणी मंथन कहा जाता है।
लकड़ियों के घर्षण से पैदा होती है आग
आचार्य निधीनाथ ने बताया कि अरणी मंथन से आग उत्पन्न करने के लिए लकड़ियों की जरूरत होती है। लकड़ी की एक नुकीली नुमा डिजाइन को पाटे( लकडी का सपाट स्ट्रक्चर) पर रखकर घर्षण करवाया जाता है। उस पर ऊपर से एक व्यक्ति तेजी से दबाव बनाता है। दूसरा व्यक्ति उसे सूत या जूट की रस्सी की मदद से मंथता है। काफी तेजी से मन्त्रोच्चार से यह प्रक्रिया की जाती है। इस दौरान लगातार सहस्त्रशी मंत्रों का जाप किया जाता है। इसमें अग्नि का आव्हान भी होता है। इस प्रक्रिया में करीब बीस से पैतालीस मिनट लगते है। जिसके बाद इसमें पहले धुआं और फिर आग प्रज्ज्वलित होती है। इसके बाद इसे कपूर जलाकर अग्निकुंड में काम में लिया जाता है। उन्होंने बताया कि हवन या यज्ञ में इसी तरह अरणी मंथन से ही अग्नि जलाई जाती है। बडे हवन इसी तरह से होते हैं। शास्त्रों में इसी तरह आग प्रज्ज्वलित करने की बात कही गई है। लेकिन आजकल लोगों के पास इतना समय नहीं होता। कोटा में करीब ऐसे दस से पंद्रह पंडित या आचार्य हैं जो अरणी मंथन की विधि जानते हैं।
गुरु शिष्य परंपरा से चल रही वेद पाठशाला
रामधाम में संचालित वेद पाठशाला के बारे में आचार्य निधिनाथ ने बताया कि यहां पांचवी कक्षा के बाद दस से चौदह साल के बच्चे एडमिशन ले सकते है। उन्हें आश्रम में ही रुकना होता है। सुबह और शाम दो दो घंटे की पढ़ाई उन्हें करवाई जाती है। बच्चों को वेदों की जानकारी दी जाती है। बच्चों का स्कूल जाना जरूरी है और यह ध्यान रखा जाता है कि बच्चे सरकारी स्कूल के हो। प्राइवेट वाले बच्चों को भी शिक्षा दी जाती है लेकिन उनके स्कूल के समय में कई बार दिक्कत होती है। इसके बाद ग्रेजुएशन के लिए यहां शास्त्री और आचार्य के कोर्स संचालित होते है। जिसमें तीन साल शास्त्री और दो साल आचार्य का कोर्स होता है। इसमें बटुको यानी स्टूडेंट को हर साल 6 हजार की स्कॉलर शिप भी दी जाती है।(सूत्र इंटरनेट)