HINDUSTAN1ST LEOPARD

चीतों के लिए कब्रिस्तान, राजस्थान के जंगल

Rajasthan 1st

RAJASTHAN1ST : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत मध्यप्रदेश के जंगलों में बसाए गए चीते राजस्थान नहीं लाए जाएंगे। हाल ही में एक के बाद एक 6 चीतों की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए राजस्थान सहित अन्य जगहों पर जंगल खोजने की बात कही थी। तब से चर्चा छिड़ी थी कि चीतों को राजस्थान के जंगलों में शिफ्ट किया जा सकता है। वन्यजीव प्रेमियों में भी इसको लेकर खुशी का माहौल था। लेकिन हकीकत ये है कि राजस्थान में किसी भी सूरत में चीतों का नया घर नहीं बन सकता है। क्योंकि राजस्थान के जंगल, जलवायु, भूगोल किसी भी तरह से चीतों के लिए अनुकूल नहीं है। चीतों की शिफ्टिंग की चर्चा के बीच भास्कर ने वन विभाग के सीनियर अफसरों से बातचीत की तो सामने आया कि ना तो केंद्र ने राजस्थान सरकार से चीतों के शिफ्टिंग को लेकर कहा है और ना ही मध्यप्रदेश सरकार ने ऐसा कोई प्रस्ताव भेजा है।

  1. दस साल के रिसर्च के बाद कूनो को चुना गया था

भारत में चीता प्रोजेक्ट कई वर्षों से चल रहा है। पिछले दो दशक में इस पर खूब रिसर्च किया गया। लगातार 10-12 वर्ष तक भारत के कई जंगलों में सरकारी स्तर पर शोध किए गए। खोजबीन की गई कि चीतों को कहां बसाया जा सकता है। आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट, उत्तराखंड, असम, बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे विहंगम जंगलों को देखा गया। तब जाकर कूनो (मध्यप्रदेश) का चयन चीतों के लिए किया गया। राजस्थान के जंगल तो उन राज्यों जैसे हैं ही नहीं। राजस्थान को कभी भी चीतों के लिए अनुकूल नहीं माना गया। ऐसे में केवल पड़ोसी राज्य होने मात्र से चीतों को राजस्थान नहीं बसाया जा सकता।

  1. चीते को चाहिए घास के मैदान

विश्व में चीतों के सबसे बड़े घर माने जाने वाले मसाई मारा के जंगल (अफ्रीका) में चीतों की सैकड़ों फोटो खींच चुके वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर सुरेन्द्र सिंह चौहान ने भास्कर को बताया कि घास के मैदान चीते को बहुत प्रिय होते हैं, जो राजस्थान के किसी भी जंगल में उपलब्ध नहीं है। अफ्रीका या पश्चिमी एशिया में जहां जंगलों में चीते रहते हैं, वहां पर वे घास के मैदान वाले इलाकों में ही रहते हैं। हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले जंगलों में चीते स्वाभाविक रूप से सदियों से रहते आए हैं। राजस्थान का कोई जंगल हजारों वर्ग किलोमीटर में नहीं फैला हुआ है। चीते को लंबी दूरी तक दौड़ने की आदत होती है। वो चलते-दौड़ते सैकड़ों किलोमीटर की दूरियां तय कर लेता है। ऐसा कोई जंगल राजस्थान में नहीं है।

  1. चीते के जानी दुश्मन तेंदुए की भरमार

राजस्थान के जंगलों में लगभग 700 तेंदुए (लेपर्ड) हैं। इन्हें चीतों का जानी दुश्मन कहा जाता है। आमना-सामना होने पर चीता तेंदुए का मुकाबला नहीं कर सकता है। राजस्थान के हर जंगल में तेंदुए की मौजूदगी है, जो चीते के लिए मुफीद नहीं है। शिकार करने में भी चीतों से तेंदुए आगे रहते हैं।

  1. पर्याप्त भोजन चीतों के लिए उपलब्ध नहीं

राजस्थान के जो भी जंगल हैं, उनमें सांभर और चीतल हिरण ज्यादा हैं। जंगली सुअर और नीलगाय आदि भी खूब हैं। इन जीवों का शिकार चीता नहीं कर पाता है। इनके अलावा दूसरे छोटे जीव बहुत कम हैं। तालछापर, बीकानेर, जैसलमेर की तरफ काले हिरण व चिंकारा हैं, उनका शिकार चीते करते हैं, लेकिन वे जंगल बहुत छोटे (5 से 10 वर्ग किलोमीटर) हैं। वहां 2-4 चीतों को भी बसाना संभव नहीं।

  1. राजस्थान के जंगल पहाड़ी-पठारी

वन्यजीवों के इलाज में पिछले 3 दशक से जुटे हुए डॉक्टर प्रदीप शर्मा ने भास्कर को बताया कि राजस्थान के जंगल भौगोलिक रूप से पहाड़ी-पठारी हैं। चीता पथरीली जमीन पर चलने-दौड़ने के लिए बना ही नहीं है। चीता ज्यादा हरे-भरे जंगलों में नहीं रह पाता है। सूखी घास के जंगल राजस्थान में नहीं है। ऐसे में यहां के जंगलों के लिए वो पूरी तरह से मिसफिट है। यहां के जंगलों में पानी की कमी और तापमान गर्मियों में 45-50 डिग्री के बीच रहने से बेहद मुश्किल वातावरण है चीते के लिए।

  1. बाघों, लकड़बग्घों और तेंदुओं के लिए छोटे पड़ रहे

राजस्थान के जंगलों से लगातार बाघ मध्य प्रदेश की तरफ मूवमेंट कर रहे हैं। प्रदेश में बाघों की संख्या 100 से ज्यादा हो गई है। रणथम्भौर में बाघों की भिड़ंत आम बात हो गई है। बाघों के अलावा राजस्थान के किसी न किसी शहर-कस्बे में लगभग हर दिन कहीं न कहीं तेंदुआ मानव बस्तियों में आ जाता है। हाईवे पर निरंतर लकड़बग्घों, सियारों, तेंदुओं की वाहनों से टकराने की घटनाएं हो रही हैं। ऐसे में चीतों को यहां बसाना इसी संघर्ष को और बढ़ाने जैसा कदम साबित हो सकता है।(सूत्र इंटरनेट)