RAJASTHAN1ST : राजस्थान में कांग्रेस और पायलट गुट के बीच जिस तरह की लड़ाई छिड़ी हुई है, उसमें मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। वे किसी भी कीमत पर सरकार रिपीट कराने की कोशिश में जुटे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने कर्नाटक में कांग्रेस का चुनावी कैंपेन संभालने वाली टीम काे ही प्रचार और रणनीति बनाने की जिम्मेदारी दी है। ये टीम ही महंगाई राहत कैंप जैसे अलग-अलग प्रयोग करने में जुटी है। इसके लिए राज्य सरकार करीब 150 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने की तैयारी में है। कर्नाटक वाली इस टीम के मध्य प्रदेश कांग्रेस के साथ भी जुड़ने की चर्चा है।
जल्द ही राजस्थान के लिए बनाएंगे रणनीति
डिजाइन बॉक्स्ड के निदेशक नरेश अरोड़ा ने भास्कर को बताया कि हाल ही कर्नाटक की जीत से हम सभी लोग उत्साहित हैं। फिलहाल हम दिल्ली में पार्टी के साथ विभिन्न स्तरों पर बातचीत कर रहे हैं। हम राजस्थान में भी रणनीतिक सलाहकार हैं। सरकार के साथ मिल कर हम काम कर रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस को जो सफलता मिली है, वैसी ही राजस्थान में भी दोहराने का प्रयास है।
4 करोड़ 70 लाख लोगों को महंगाई से राहत
प्रदेश में करीब 6 करोड़ मतदाता हैं। इनमें से 4 करोड़ 63 लाख लोगों के राहत कार्ड (विभिन्न योजनाओं के) सरकार द्वारा लगाए गए शिविरों में बन चुके हैं। ये कार्ड एक करोड़ 3 लाख (1.03 करोड़) लोगों के नाम पर बने हैं। अब इसी राहत पर आधारित एक ऐसी इमेज बनाई जाएगी, जिसमें सीएम गहलोत को इन लोगों को केन्द्र सरकार की महंगाई की मार से राहत देने वाला CM बताया जाएगा।
पेशेवर रणनीतिकारों का साथ जरूरी
वर्तमान में कर्नाटक में कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन मोहन प्रकाश ने भास्कर को बताया कि अब आधुनिक जमाना है। संचार के हजारों तरीके हो गए हैं। लोगों तक अपनी बात पहुंचानी है, तो पेशेवर रणनीतिकारों की जरूरत कांग्रेस को भी है। कर्नाटक में हमारा प्रयोग सही रहा है। राजस्थान में महंगाई राहत शिविर भी सफल हो रहे हैं। हम इसी राहत को लेकर जनता के बीच जाएंगे। रणनीतिकार इसकी तैयारी कर रहे हैं।
सचिन पायलट के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग
वर्ष 2012 में नरेंद्र मोदी, 2017 में कैप्टन अमरिन्दर सिंह, 2019 में जगनमोहन रेड्डी, 2015 में नीतीश कुमार, 2015 में अरविंद केजरीवाल, 2021 में एमके स्टालिन और 2021 में ममता बनर्जी के चुनाव रणनीतिकार रह चुके प्रशांत किशोर की गिनती देश के दिग्गज चुनाव रणनीतिकारों में होती है। वे इन दिनों बिहार में जन सुराज पदयात्रा निकाल रहे हैं। उनकी संस्था आई-पेक राजस्थान में भी काम कर रही है और यहां युवाओं को राजनीति ज्वॉइन करने का आह्वान कर रही है।
राजनीतिक पार्टी की क्या रणनीति होगी
BBC के पॉलिटिकल एडिटर और पूर्व सूचना आयुक्त रहे नारायण बारेठ एजेंसियों को हायर करने और उन पर जनता के पैसे लुटाने को सैद्धांतिक रूप से गलत मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सर्वे, प्लानिंग, स्ट्रैटेजिक एजेंसियों और रणनीतिकारों को हायर करने का काम गुजरात में भाजपा ने शुरू किया था। अब सभी कर रहे हैं। अब मार्केट की ताकतें यह तय करती हैं कि किस राजनीतिक पार्टी या राजनेता को क्या, कैसे और कब कोई फैसला करना है। महात्मा गांधी ने दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अंग्रेजों को हराया और भगाया था तो उन्होंने इस तरह की एजेंसियों की मदद नहीं ली थी। इस तरह के राजनीतिक रणनीतिकारों से परिणामों पर विशेष फर्क नहीं पड़ता, अंतत: सुशासन ही महत्वपूर्ण होता है।
एजेंसियों से जनता के दिल पर राज
राजनीतिक टिप्पणीकार व लेखक वेद माथुर का कहना है कि राजनीति रणनीति बनाना भी एक बिजनेस है। कमजोर राजनेताओं व उनकी पार्टियों को इसकी जरूरत पड़ती है। इंदिरा, चंद्रशेखर, वाजपेयी जैसे नेताओं को इनकी जरूरत कभी नहीं थी। मूल रूप से अगर कोई पार्टी सत्ता में है तो सुशासन और विपक्ष में तो कैसे वो सत्ता की कमजोरियों को उजागर करे यही महत्वपूर्ण है। इस तरह की एजेंसियां-कंपनियां आपका प्रचार-प्रसार कर सकती हैं, लेकिन जनता के दिलो-दिमाग में तो आप केवल अपने चरित्र, जुबान और नीतियों से ही घुस सकते हैं।(सूत्र इंटरनेट)